लॉस एंजिल्स। अमेरिका में आव्रजन नीतियों को लेकर जारी खींचतान के बीच ट्रंप प्रशासन को एक बड़ा झटका लगा है। एक संघीय न्यायाधीश ने शुक्रवार को अमेरिकी सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) के पक्ष में फैसला सुनाते हुए लॉस एंजिल्स और कैलिफोर्निया के कई काउंटियों में चल रहे आव्रजन छापों को तुरंत रोकने का आदेश दिया है।
यह फैसला न्यायाधीश मामे इवुसी-मेन्सा फ्रिम्पोंग ने सुनाया, जिन्होंने छापेमारी कर रहे संघीय एजेंटों पर अमेरिकी संविधान के चौथे संशोधन का उल्लंघन करने का गंभीर आरोप लगाया। अदालत ने साफ कहा कि बिना ठोस सबूत के किसी को हिरासत में लेना संविधान का सीधा उल्लंघन है।
ACLU और आप्रवासी अधिकार संगठनों ने कोर्ट में यह दावा किया कि ट्रंप प्रशासन के तहत ICE (इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एनफोर्समेंट) एजेंट बिना वारंट के छापे मार रहे हैं, रंगभेद के आधार पर लोगों को निशाना बना रहे हैं और हिरासत में लिए गए लोगों को वकील से मिलने तक नहीं दे रहे।
ACLU के वकील मोहम्मद ताजसर ने कहा, “चाहे किसी की भाषा, त्वचा का रंग या पेशा कुछ भी हो – हर व्यक्ति को संवैधानिक सुरक्षा हासिल है। इस फैसले से लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा हुई है।”
हालांकि, ट्रंप प्रशासन की ओर से इन आरोपों को खारिज किया गया है। अमेरिकी अटॉर्नी बिल एसेली ने कहा, “हम आरोपों से असहमत हैं। हमारे एजेंटों ने हमेशा कानून का पालन किया है।”
फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कैलिफोर्निया के गवर्नर गेविन न्यूसम ने इसे “न्याय की जीत” बताया और कहा कि अब संघीय एजेंट मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकेंगे।
न्यायाधीश फ्रिम्पोंग, जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन ने नियुक्त किया था, ने फैसले में ट्रंप प्रशासन की आलोचना करते हुए लिखा, “बिना किसी कानूनी औचित्य के छापे संविधान का चौथे संशोधन और वकीलों तक पहुंच न देना पांचवें संशोधन का खुला उल्लंघन है।”
इस मुकदमे का केंद्र बने ब्रायन गाविडिया, जिन्हें हाल ही में गिरफ्तार किया गया था, ने कोर्ट के बाहर कहा, “मैंने कई बार कहा कि मैं अमेरिकी नागरिक हूं, लेकिन फिर भी मेरा फोन छीन लिया गया और मुझे हिरासत में ले लिया गया।”
इस ऐतिहासिक फैसले से अमेरिका में आव्रजन अधिकारों पर चल रही बहस को नया मोड़ मिल गया है – खासकर ऐसे वक्त में जब देश में नस्लीय समानता और संविधानिक अधिकारों की रक्षा को लेकर चिंताएं गहराई हुई हैं।