नई दिल्ली। भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) द्वारा आयोजित ‘मॉक पार्लियामेंट’ कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कई अहम मुद्दों पर बेबाक राय रखी। चाहे बात एससीओ समिट की हो, 1975 के आपातकाल की या फिर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की, जयशंकर का हर जवाब साफ संकेत देता है कि भारत अब वैश्विक मंचों पर कोई समझौता करने के मूड में नहीं है।
SCO समिट पर भारत का स्पष्ट संदेश: आतंकवाद पर चुप्पी मंजूर नहीं
विदेश मंत्री ने शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को लेकर भारत की सख्त नीति का बचाव करते हुए कहा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर न करना बिल्कुल सही निर्णय था। जयशंकर ने बताया कि एससीओ की बुनियाद ही आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई पर टिकी है, ऐसे में जब एक देश ने अंतिम दस्तावेज़ में आतंकवाद के जिक्र को हटाने की मांग की, तो भारत ने स्पष्ट कहा—बिना इस अहम मुद्दे के हम दस्तावेज़ को मान्यता नहीं देंगे।
उन्होंने जोर देते हुए कहा, “SCO सर्वसम्मति से चलता है, और अगर उसमें से आतंकवाद जैसी मूल भावना को ही हटा दिया जाए, तो भारत का समर्थन असंभव है। राजनाथ सिंह ने वही किया जो एक जिम्मेदार राष्ट्र प्रतिनिधि को करना चाहिए था।”
आपातकाल पर सीधा हमला, कांग्रेस के डीएनए पर सवाल
जयशंकर ने 1975 में लगाए गए आपातकाल पर अपनी यादें साझा करते हुए कहा कि उस वक्त वे करीब 20 साल के थे और उन्होंने उस दौर को करीब से महसूस किया। उन्होंने कहा कि आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का सबसे काला अध्याय था, जिसमें संविधान को कुचला गया, मीडिया की स्वतंत्रता छीनी गई और देश की वैश्विक साख को नुकसान पहुंचा।
कांग्रेस पर सीधा हमला बोलते हुए जयशंकर ने कहा, “संविधान हाथ में लेकर घूमने से कुछ नहीं होता, उसे आत्मसात करना पड़ता है। कांग्रेस के डीएनए में आपातकाल है, और आज जब वो संविधान की बात करते हैं तो यह उनकी करनी से मेल नहीं खाता।”
‘ऑपरेशन सिंदूर’ में दिखी राजनीतिक एकता, भारत के लिए गौरव का क्षण
जयशंकर ने संसद के प्रतिनिधिमंडलों द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर साझा रुख अपनाने को देश के लिए गौरवपूर्ण बताया। उन्होंने कहा, “जब मैं शशि थरूर, सुप्रिया सुले, कनिमोझी, रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं को एक सुर में आतंकवाद के खिलाफ बोलते देखता हूं, तो यह सिर्फ एक राजनीतिक संदेश नहीं, बल्कि भारत की एकजुटता की ताकत का प्रतीक होता है।”
उन्होंने कहा कि दुनिया के हर मंच पर यह बात कही गई कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल की सबसे बड़ी ताकत थी—‘एकता’। भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए सभी दलों का एकजुट होना, वैश्विक राजनीति में भारत की मजबूत स्थिति का संकेत है।
निष्कर्ष
जयशंकर का यह भाषण एक ओर भारत की वैश्विक कूटनीतिक दृढ़ता को दर्शाता है, तो दूसरी ओर देश की लोकतांत्रिक चेतना को भी नए सिरे से जाग्रत करता है। उनका स्पष्ट संदेश था—न आतंकवाद पर समझौता करेंगे, न लोकतंत्र की कीमत पर राजनीति।