निकोसिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब साइप्रस की दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ। भारतीय समुदाय ने उन्हें ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता पर बधाई दी और गर्मजोशी से मुलाकात की। पीएम मोदी ने लिमासोल में आयोजित भारत-साइप्रस सीईओ फोरम को संबोधित करते हुए भारत के तेज़ी से बदलते आर्थिक परिदृश्य और वैश्विक सहयोग की नई संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की।
भारत-साइप्रस व्यापार में अपार संभावनाएं
सीईओ फोरम में साइप्रस के राष्ट्रपति निकोस क्रिस्टोडौलिडेस की मौजूदगी में पीएम मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच व्यापार, ऊर्जा, तकनीक और नवाचार जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत जल्द ही दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।
डिजिटल क्रांति और आर्थिक विकास का दमदार मॉडल
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की डिजिटल क्रांति को गेम चेंजर करार दिया। उन्होंने बताया कि वैश्विक डिजिटल लेन-देन का 50 प्रतिशत हिस्सा अब भारत के UPI सिस्टम से हो रहा है। इस तकनीकी बदलाव ने वित्तीय समावेशन और स्टार्टअप संस्कृति को पंख लगाए हैं। उन्होंने कहा, “भारत की एक लाख से ज्यादा स्टार्टअप कंपनियां आज केवल सपने नहीं बेचतीं, बल्कि समाधान पेश कर रही हैं।”
हरित विकास और वैश्विक साझेदारी की दिशा में कदम
मोदी ने भारत की हरित अर्थव्यवस्था की प्रतिबद्धता पर भी बल दिया। उन्होंने बताया कि 2030 तक भारत 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। साथ ही रेलवे को 100% कार्बन-न्यूट्रल बनाने और हरित शिपिंग को बढ़ावा देने की योजनाएं भी साझा कीं।
साइप्रस से कनाडा और फिर क्रोएशिया
साइप्रस यात्रा के बाद प्रधानमंत्री मोदी कनाडा रवाना होंगे, जहां वे जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। यह उनकी जी-7 में लगातार छठी उपस्थिति होगी। सम्मेलन में वे ऊर्जा सुरक्षा, AI गठजोड़ और क्वांटम तकनीक जैसे अहम वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करेंगे।
इसके बाद 18 जून को पीएम मोदी क्रोएशिया जाएंगे, जो किसी भारतीय प्रधानमंत्री की इस देश की पहली आधिकारिक यात्रा होगी। यह दौरा भारत-यूरोपीय संघ संबंधों को नई मजबूती देगा।
निष्कर्ष: भारत का ग्लोबल विजन, साइप्रस से क्रोएशिया तक
प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा भारत के आर्थिक, तकनीकी और पर्यावरणीय नेतृत्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी बन रही है। उनके विजन में न केवल भारत की उन्नति है, बल्कि एक साझी, समावेशी और हरित वैश्विक भविष्य की मजबूत झलक भी दिखाई देती है।