नई दिल्ली। देश में घटिया स्टील के आयात पर लगाम लगाने और घरेलू उद्योग को मजबूती देने के लिए केंद्र सरकार ने स्टील उत्पादों के क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर (QCO) पर अहम स्पष्टीकरण जारी किया है। इस्पात मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि 13 जून को जो आदेश जारी किया गया था, वह नया निर्देश नहीं बल्कि पहले से लागू 151 बीआईएस (BIS) मानकों को लेकर एक तकनीकी स्पष्टता है।
मंत्रालय ने कहा कि यह स्पष्टीकरण इसलिए जरूरी था क्योंकि अब तक सिर्फ घरेलू स्टील निर्माता ही बीआईएस मानकों के अनुसार मध्यवर्ती कच्चे माल का उपयोग कर रहे थे, जबकि आयातकों के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी। अब यह सुनिश्चित किया गया है कि चाहे स्टील भारत में बने या विदेश से आए—मध्यवर्ती सामग्री हो या फाइनल प्रोडक्ट—हर स्तर पर BIS स्टैंडर्ड्स का पालन अनिवार्य होगा।
सरकार ने साफ कर दिया है कि इसका मकसद सिर्फ गुणवत्ता बनाए रखना ही नहीं, बल्कि सस्ते और घटिया स्टील की भारत में हो रही ‘डंपिंग’ को रोकना भी है। मंत्रालय ने चिंता जताई कि कुछ देशों में स्टील उत्पादन की अधिक क्षमता और मांग में गिरावट की वजह से वे अपना घटिया माल भारत जैसे तेजी से बढ़ते बाजार में खपाना चाहते हैं।
बयान में कहा गया है कि भारत वर्तमान में दुनिया की इकलौती बड़ी अर्थव्यवस्था है जहां पिछले तीन वर्षों में स्टील की खपत 12% से भी अधिक दर से बढ़ी है। इसका सीधा संबंध देश में इंफ्रास्ट्रक्चर, रियल एस्टेट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी से हो रहे विकास से है।
सरकार का अनुमान है कि 2030 तक देश को 300 मिलियन मीट्रिक टन और 2035 तक 400 मिलियन मीट्रिक टन स्टील उत्पादन क्षमता की जरूरत होगी। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए करीब 200 अरब डॉलर का निवेश आवश्यक होगा। अगर सस्ता और घटिया स्टील बाजार में आता रहा, तो घरेलू स्टील उद्योग की यह निवेश क्षमता और विस्तार योजनाएं गहरे संकट में पड़ सकती हैं।
मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जिन इंटीग्रेटेड स्टील प्लांट्स के पास पहले से BIS लाइसेंस है और जो खुद ही मध्यवर्ती और फाइनल उत्पाद तैयार करते हैं, उन्हें हर चरण के लिए अलग-अलग लाइसेंस लेने की जरूरत नहीं होगी। BIS की सर्टिफिकेशन प्रक्रिया पहले से ही पूरी मैन्युफैक्चरिंग चेन को कवर करती है।
इस कदम से घरेलू उद्योग को तो मजबूती मिलेगी ही, साथ ही उपभोक्ताओं को भी गुणवत्ता वाले स्टील उत्पाद मिलेंगे। केंद्र सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ‘मेक इन इंडिया’ का सपना तब ही साकार होगा जब उसमें इस्तेमाल होने वाला स्टील भी वैश्विक मानकों पर खरा उतरेगा।