नई दिल्ली। भारत की अर्थव्यवस्था से जुड़ी एक सुकून भरी खबर सामने आई है। मई 2025 में देश का व्यापार घाटा घटकर 21.88 बिलियन डॉलर पर आ गया, जो अप्रैल में 26.42 बिलियन डॉलर था। यह न सिर्फ मासिक स्तर पर गिरावट है, बल्कि मई 2024 के मुकाबले (22.09 बिलियन डॉलर) सालाना आधार पर भी घाटा कम हुआ है।
निर्यात में आई मजबूती, इलेक्ट्रॉनिक्स ने मारी बड़ी छलांग
वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने जानकारी देते हुए बताया कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत का व्यापार प्रदर्शन संतोषजनक रहा है। उन्होंने कहा कि मई में इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्यात में जबरदस्त 54% की वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें मोबाइल फोन का योगदान अहम रहा। इसके अलावा, रसायनों के निर्यात में 16% और फार्मा उत्पादों में 7.38% की वृद्धि देखने को मिली।
थोड़ी सुस्ती जरूर, लेकिन संतुलन बना रहा
बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के बीच मई 2025 में व्यापारिक वस्तुओं का कुल निर्यात 2.17% गिरकर 38.73 बिलियन डॉलर रह गया, जबकि मई 2024 में यह आंकड़ा 39.59 बिलियन डॉलर था। वहीं, आयात में भी हल्की गिरावट दर्ज की गई — यह 1.7% घटकर 60.61 बिलियन डॉलर रहा, जो पहले 61.68 बिलियन डॉलर था।
सेवाओं में बना सरप्लस, रुपये को मिल रहा समर्थन
सेवाओं के क्षेत्र में भी भारत ने अच्छी स्थिति बनाई है। मई में सेवा निर्यात 32.39 बिलियन डॉलर पहुंचा, जबकि सेवा आयात 17.14 बिलियन डॉलर रहा, जिससे देश को 14.65 बिलियन डॉलर का अनुमानित सरप्लस मिला।
विदेशी मुद्रा भंडार ने बनाया रिकॉर्ड, डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के सबसे ऊंचे स्तर की ओर बढ़ रहा है। 6 जून को समाप्त सप्ताह में यह 5.17 अरब डॉलर बढ़कर 696.66 अरब डॉलर पहुंच गया। यह सितंबर 2024 के ऐतिहासिक उच्च स्तर 704.88 अरब डॉलर के बेहद करीब है।
इस दौरान विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में 3.47 अरब डॉलर की वृद्धि हुई और यह 587.69 अरब डॉलर हो गई। वहीं, सोने के भंडार में भी 1.6 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह अब 85.89 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। केंद्रीय बैंक लगातार सोने को विदेशी मुद्रा भंडार का सुरक्षित विकल्प मानते हुए अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं। 2021 से अब तक आरबीआई की सोने की होल्डिंग लगभग दोगुनी हो चुकी है।
निष्कर्ष: व्यापार घाटे में कमी, सेवा क्षेत्र में अधिशेष और रिकॉर्ड विदेशी मुद्रा भंडार जैसे संकेत साफ तौर पर दर्शाते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक चुनौतियों के बीच भी मजबूती से खड़ी है। यह रुपया और निवेशकों के आत्मविश्वास के लिए एक सकारात्मक संकेत है।