नई दिल्ली। भारत-पाक संघर्ष विराम के दौरान ऑपरेशन ‘सिंदूर’ में निर्णायक भूमिका निभाकर चर्चा में आए लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई को भारतीय सेना में एक और बड़ी जिम्मेदारी मिली है। उन्हें अब सेना के उप प्रमुख (रणनीति) के अहम पद पर पदोन्नत किया गया है। वे फिलहाल डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) का कार्यभार भी संभाल रहे हैं और दोनों भूमिकाओं में सेना के लिए रणनीतिक दिशा तय करने में अहम योगदान दे रहे हैं।
लेफ्टिनेंट जनरल घई तीन दशक से ज्यादा समय तक जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अपनी विशेष सेवा के लिए पहचाने जाते हैं। उन्होंने आतंकवाद विरोधी अभियानों, सैन्य कमान और रणनीतिक योजनाओं में अग्रणी भूमिका निभाई है। अक्टूबर 2024 में डीजीएमओ की जिम्मेदारी संभालने के बाद से वे कई प्रमुख अभियानों के केंद्र में रहे हैं, जिनमें सबसे प्रमुख ऑपरेशन ‘सिंदूर’ है। इस ऑपरेशन में उन्होंने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी शिविरों पर सटीक और प्रभावी सैन्य कार्रवाई की योजना बनाई और उसे अंजाम तक पहुंचाया।
ऑपरेशन सिंदूर को लेकर हुई प्रेस वार्ता में लेफ्टिनेंट जनरल घई ने लश्कर-ए-तैयबा के ठिकानों पर हमले की पुष्टि की और बताया कि इस कार्रवाई में पाकिस्तानी सेना को भी गंभीर क्षति पहुंची। उन्होंने पाकिस्तान द्वारा संघर्ष विराम के उल्लंघन, गुरुद्वारों जैसे नागरिक स्थानों पर हमले और सीमा पार से लगातार हो रही गोलाबारी की ओर भी ध्यान आकर्षित किया।
देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक लेफ्टिनेंट जनरल घई ने दिसंबर 1989 में कुमाऊं रेजिमेंट से अपनी सैन्य यात्रा शुरू की थी। अपने 33 वर्षों के सेवा काल में वे सेना मुख्यालय में ब्रिगेडियर, कर्नल जनरल स्टाफ जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। उन्होंने पश्चिमी सीमा पर बटालियन, ब्रिगेड और उत्तरी मोर्चे पर एक डिवीजन की कमान संभाली है।
डीजीएमओ बनने से पहले वे कश्मीर में चिनार कोर के जीओसी (GOC) के रूप में कार्यरत थे, जहां उन्होंने आतंकवाद से निपटने के लिए सेना, नागरिक प्रशासन और आम जनता के बीच समन्वय की मिसाल पेश की।
लेफ्टिनेंट जनरल घई को अब तक उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक और सेना पदक जैसे उच्च सैन्य सम्मान मिल चुके हैं। उनके रणनीतिक कौशल और नेतृत्व ने भारतीय सेना को नए मुकाम तक पहुंचाया है और देश की सुरक्षा नीति में उन्हें एक भरोसेमंद नाम बना दिया है।
उनकी यह पदोन्नति केवल सम्मान नहीं, बल्कि आने वाले समय में भारतीय सेना की रणनीतिक दिशा और सुरक्षा नीति के लिए उनकी बढ़ती भूमिका की पुष्टि है।