वाशिंगटन। अमेरिका की राजनीति और शिक्षा जगत के बीच एक बार फिर टकराव की लकीर खिंच गई है। ट्रंप प्रशासन ने गुरुवार को हार्वर्ड विश्वविद्यालय की वह अधिकारिता समाप्त कर दी, जिसके तहत वह विदेशी छात्रों को दाखिला दे सकता था। इस फैसले ने न सिर्फ हार्वर्ड के दरवाजे दुनिया भर के छात्रों के लिए बंद कर दिए हैं, बल्कि अमेरिका की शिक्षा-नीति पर भी बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने स्पष्ट किया कि हार्वर्ड अब विदेशी छात्रों को नए सत्र में प्रवेश नहीं दे सकता और जो छात्र पहले से विश्वविद्यालय में हैं, उन्हें या तो किसी और संस्थान में स्थानांतरित होना होगा या अमेरिका में उनकी कानूनी स्थिति समाप्त मानी जाएगी।
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप प्रशासन ने यह कदम हार्वर्ड द्वारा विभाग के उन निर्देशों को मानने से इनकार करने के बाद उठाया है, जिसमें विदेशी छात्रों के व्यवहार से संबंधित डाटा साझा करने को कहा गया था। विश्वविद्यालय ने इसे छात्रों की निजता और अकादमिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में देखा।
राजनीति बनाम शिक्षा का संघर्ष
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अबीगैल जैक्सन ने इस फैसले का बचाव करते हुए कहा, “विदेशी छात्रों को दाखिला देना कोई अधिकार नहीं, बल्कि विशेषाधिकार है। हार्वर्ड अब शिक्षा के केंद्र की बजाय अमेरिका विरोधी और आतंकवाद समर्थक विचारों का गढ़ बनता जा रहा है।”
वहीं, हार्वर्ड विश्वविद्यालय ने इस फैसले को संविधान और शिक्षा की आत्मा पर प्रहार बताया है। प्रवक्ता जेसन न्यूटन ने कहा, “यह न केवल गैरकानूनी है, बल्कि हमारे 140 से अधिक देशों से आने वाले छात्रों के लिए एक गंभीर झटका है। इससे न केवल हमारे संस्थान की क्षमता पर असर पड़ेगा, बल्कि अमेरिका की वैश्विक छवि को भी नुकसान होगा।”
विदेशी छात्रों के भविष्य पर खतरा
इस समय हार्वर्ड में करीब 10,000 अंतरराष्ट्रीय छात्र पढ़ाई कर रहे हैं। नए शैक्षणिक सत्र 2024-25 में 6,793 छात्रों ने नामांकन कराया था, जिनका भविष्य अब अधर में लटक गया है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और असर
इस फैसले की आलोचना केवल अमेरिका के भीतर ही नहीं, बल्कि वैश्विक शिक्षा जगत में भी हो रही है। शिक्षाविदों का मानना है कि इससे अमेरिका की ‘शिक्षा में विश्वनेता’ की छवि कमजोर होगी और अन्य देशों के विश्वविद्यालयों को इसका लाभ मिल सकता है।
संक्षेप में: ट्रंप प्रशासन और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बीच यह विवाद अब केवल नीति का मुद्दा नहीं रहा, बल्कि यह अमेरिका में शिक्षा की स्वतंत्रता, छात्रों की अभिव्यक्ति और वैश्विक सहयोग के मूल्यों की परीक्षा बन गया है।