हर साल वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाई जाने वाली बुद्ध पूर्णिमा केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि जागृति, करुणा और मुक्ति की त्रिपथगामिनी तिथि है। यही वह शुभ दिन है जब भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ, उन्हें बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति हुई और कुशीनगर में उन्होंने परिनिर्वाण प्राप्त किया। 2025 में यह पावन अवसर सोमवार, 12 मई को मनाया जाएगा, जो भगवान बुद्ध की 2587वीं जयंती होगी।
बुद्ध पूर्णिमा क्यों है इतना खास?
बुद्ध पूर्णिमा एक ऐसा दिन है जिसमें तीन आध्यात्मिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं:
- जन्म: सिद्धार्थ गौतम का जन्म लुंबिनी (वर्तमान नेपाल) में एक राजपरिवार में हुआ था।
- ज्ञान प्राप्ति: 35 वर्ष की आयु में, बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया और ‘बुद्ध’ बने।
- परिनिर्वाण: 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में उन्होंने अंतिम सांस ली और निर्वाण को प्राप्त हुए।
यही कारण है कि यह दिन बौद्ध अनुयायियों और आत्मिक साधकों के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है।
केवल भारत नहीं, पूरी दुनिया मनाती है यह पर्व
बुद्ध पूर्णिमा न केवल भारत में, बल्कि थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल, चीन, कम्बोडिया और तिब्बत जैसे देशों में भी बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाई जाती है। इसे ‘वेसाक’ या ‘वैशाखी बुद्ध पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है।
कैसे मनाई जाती है बुद्ध पूर्णिमा?
- श्रद्धालु भगवान बुद्ध के मंदिरों और पवित्र स्थलों पर दर्शन करने जाते हैं, विशेषकर बोधगया के महाबोधि मंदिर में।
- दान, ध्यान और करुणा इस दिन के मुख्य स्तंभ होते हैं।
- पिंजरे में बंद पक्षियों को आज़ादी देना, भिक्षुओं को भोजन देना और जरूरतमंदों की मदद करना आम परंपराएं हैं।
- बुद्ध के उपदेश पढ़े जाते हैं और ‘अहिंसा’ व ‘संतुलित जीवन’ जैसे उनके विचारों को जीवन में उतारने का संकल्प लिया जाता है।
बुद्ध पूर्णिमा: एक आत्मिक संदेश
यह दिन केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा की यात्रा का प्रतीक है। गौतम बुद्ध का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन की सच्ची सुंदरता शांति, सादगी और करुणा में है।
उनका संदेश आज के व्यस्त और उलझे युग में और भी प्रासंगिक हो गया है – कि भीतर की शांति ही सच्चा सुख है।
तो आइए, इस बुद्ध पूर्णिमा पर सिर्फ पूजा न करें, बल्कि बुद्ध के विचारों को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। यही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।