नई दिल्ली: इस साल की शुरुआत से ही, भारतीय सशस्त्र बलों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का कारण बन चुका है, एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) ‘ध्रुव’ की उड़ानों पर लगी रोक। विशेष रूप से भारत-चीन और भारत-पाकिस्तान सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए ये हेलीकॉप्टर अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये निगरानी, टोही, और खोज एवं बचाव मिशनों के लिए अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन तीन महीने से इन हेलीकॉप्टरों का उड़ना बंद होने से सैन्य ऑपरेशंस में रुकावट आ रही है।
भारतीय सेना, जिसके पास 180 से अधिक ‘ध्रुव’ हेलीकॉप्टर हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हो रही है। इसके अलावा, भारतीय वायु सेना और नौसेना भी इस पारी का हिस्सा बन चुके हैं, क्योंकि उनके पास भी ‘ध्रुव’ हेलीकॉप्टरों की कमी है। 350 से ज्यादा ट्विन इंजन ‘ध्रुव’ हेलीकॉप्टरों में से अधिकांश इस वक्त जमीन पर खड़े हैं, जिसके कारण सैन्य अभियानों और तैयारियों पर गहरा असर पड़ रहा है।
यह संकट तब और बढ़ गया जब 5 जनवरी को पोरबंदर में हुई एक दुर्घटना में तटरक्षक बल के दो पायलटों और एक एयर क्रू गोताखोर की मौत हो गई। इस घटना के बाद से सभी ‘ध्रुव’ हेलीकॉप्टरों को ग्राउंडेड कर दिया गया। वहीं, भारतीय सशस्त्र बलों की योजना है कि आने वाले 10-15 वर्षों में 1,000 से अधिक नए हेलीकॉप्टर खरीदे जाएं, जिसमें लाइट यूटिलिटी हेलीकॉप्टर (एलयूएच) और भारतीय बहु-भूमिका हेलीकॉप्टर (आईएमआरएच) शामिल हैं।
सेना के एक अधिकारी ने बताया कि सीमाओं पर सैनिकों को परिवहन और रसद आपूर्ति में मदद करने के लिए, कुछ नागरिक हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल शुरू किया गया है। नवंबर से, सेना ने उत्तरी और मध्य कमांड में सिविल हेलीकॉप्टरों की मदद से सैनिकों तक आपूर्ति भेजने का काम किया। अब तक, इन सिविल हेलीकॉप्टरों ने कारगिल, गुरेज, किश्तवाड़, गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश के क्षेत्रों में लगभग 900 टन सामग्री भेजने के लिए 1,500 घंटे से अधिक उड़ानें भरी हैं।
यह स्थिति भारतीय सेना की तत्परता को प्रभावित कर रही है, और इसके समाधान के लिए जल्द ही और प्रभावी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।