साहित्यकार डॉ. कमल किशोर गोयनका का निधन

नई दिल्ली। हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के उत्कृष्ट शोधकर्ता, डॉ. कमल किशोर गोयनका का मंगलवार को निधन हो गया। उनके पुत्र संजय ने बताया कि वे 87 वर्ष की आयु में दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल में सुबह लगभग 7:30 बजे निधन के शिकार हुए। उनके छोटे पुत्र राहुल विदेश में हैं, इस कारण उनका अंतिम संस्कार कल किया जाएगा।

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में 11 अक्टूबर 1938 को जन्मे डॉ. कमल किशोर गोयनका को 2014 में 24वें व्यास सम्मान से नवाजा गया था। यह सम्मान उन्हें उनकी पुस्तक ‘प्रेमचंद की कहानियों का कालक्रमानुसार अध्ययन’ के लिए मिला था। इसके अलावा, उन्हें उदय राज स्मृति सम्मान भी प्राप्त था। उन्हें प्रेमचंद साहित्य के महान मर्मज्ञ के रूप में जाना जाता है। उनका योगदान केवल प्रेमचंद तक सीमित नहीं रहा, उन्होंने हिंदी साहित्य के गहन शोध, आलोचना और प्रवासी हिंदी साहित्य के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए।

डॉ. गोयनका ने दिल्ली विश्वविद्यालय में चार दशकों तक हिंदी के शिक्षक के रूप में अपनी सेवा दी और रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने प्रेमचंद और अन्य लेखकों पर पांच दशक से अधिक समय तक शोध कार्य किया। उनकी 62 पुस्तकों में से 36 प्रेमचंद पर आधारित थीं। वे प्रेमचंद के अत्यंत करीबी शोधकर्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। उनका कार्य प्रेमचंद के साहित्य की नई व्याख्या और पुनः व्याख्या के रूप में देखा जाता है, जो भारतीयता के व्यापक संदर्भ में प्रेमचंद के साहित्य को पेश करता है।

डॉ. गोयनका ने प्रेमचंद के साहित्यिक रूप को प्रमाणिक बनाने के लिए लगभग एक हजार पृष्ठों के अज्ञात और दुर्लभ साहित्य, दस्तावेज, पत्र, पांडुलिपियाँ आदि खोजी और प्रकाशित कीं। उन्होंने प्रेमचंद को केवल मार्क्सवादी दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा के साहित्यिक शिल्पी के रूप में प्रस्तुत किया। यह हिंदी आलोचना के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन था। वे प्रेमचंद पर पीएचडी और डी-लिट करने वाले पहले शोधार्थी थे।

डॉ. गोयनका ने प्रेमचंद के शताब्दी समारोह के अवसर पर राष्ट्रीय समिति का गठन किया और देश-विदेश में कार्यक्रम आयोजित किए। 1980 में वे मॉरीशस गए, जहां प्रेमचंद की प्रदर्शनी का उद्घाटन वहां के प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने किया। उन्होंने प्रेमचंद पर वृत्तचित्र भी बनाया और साहित्य अकादमी में एक प्रदर्शनी आयोजित की।

प्रवासी हिंदी साहित्य पर उनके योगदान को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने इस क्षेत्र में 12 पुस्तकें लिखीं और 40 से अधिक प्रवासी लेखकों की पुस्तकों की भूमिका लिखी। वे पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर पहली पुस्तक के लेखक भी थे, जिसे बाद में नेशनल बुक ट्रस्ट ने पुनः प्रकाशित किया। वे कई वर्षों तक केंद्रीय हिंदी संस्थान और मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उपाध्यक्ष रहे।

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