कोयंबटूर: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि भारत, अपनी प्राचीन सभ्यता और शांतिप्रियता के लिए जाना जाता है, और यहां समावेशिता तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारी गौरवपूर्ण विरासत का हिस्सा है।
तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित “विविधतापूर्ण भारत के लिए कृषि शिक्षा, नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा” विषयक सभा में उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा, “हमारी सभ्यता के इतिहास में समावेशिता और विचारों की स्वतंत्रता का सम्मान सदियों से बढ़ता रहा है। यह हमारे समाज का अभिन्न हिस्सा है, जो आज भी जीवित और मजबूत है।”
उन्होंने यह भी कहा कि आज के दौर में समावेशिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रभाव सबसे अधिक भारत में ही देखा जा सकता है। “अगर आप दुनिया को देखें, तो भारत जैसा कोई देश नहीं है, जो इस स्तर पर समावेशिता और स्वतंत्रता का आदान-प्रदान कर सके।”
उपराष्ट्रपति ने नागरिकों से अपील की कि भारत, जो दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतंत्र है, के नागरिकों को अपनी इस धरोहर की रक्षा करनी चाहिए। “हमें इस स्वतंत्रता और समावेशिता को अपनी राष्ट्रीय संपत्ति मानते हुए इसे सहेजने की आवश्यकता है।”
कृषि क्षेत्र में उपराष्ट्रपति ने किसानों की समृद्धि की ओर कदम बढ़ाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमें केवल खाद्य सुरक्षा तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि किसानों की समृद्धि के लिए कार्य करना चाहिए। “किसान समृद्ध होंगे तो कृषि क्षेत्र की सशक्तीकरण की दिशा तय हो सकेगी,” उन्होंने कहा।
उन्होंने यह भी कहा कि किसानों को केवल उत्पादक बनने से अधिक, अपने उत्पादों के विपणन और सही मूल्य प्राप्ति पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिए तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों का योगदान अहम होगा।
किसानों को सशक्त बनाने के लिए उपराष्ट्रपति ने सरकार की सहकारी प्रणाली को मजबूत और प्रभावी बताया। “हमारा लक्ष्य किसानों को शिक्षित करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है,” उन्होंने कहा।
इस कार्यक्रम में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि, राज्य सरकार के मंत्री एन कयालविजी सेल्वराज, कृषि उत्पादन आयुक्त वी दक्षिणामूर्ति, और तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के कई प्रमुख लोग भी उपस्थित थे।