सेविले (स्पेन)। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत ने एक बार फिर अपनी प्रगतिशील सोच का प्रदर्शन करते हुए समावेशी विकास के लिए वैश्विक वित्तीय प्रणाली में बड़े सुधारों की वकालत की है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि भारत, मल्टीलेटेरल डेवलपमेंट बैंक (MDB) में सुधारों, निष्पक्ष क्रेडिट रेटिंग प्रणाली और टैक्स संरचना के आधुनिकीकरण जैसे कदमों का पुरजोर समर्थन करता है ताकि वैश्विक आर्थिक तंत्र ज्यादा न्यायपूर्ण और समावेशी बन सके।
सीतारमण ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित ‘फाइनेंसिंग फॉर डेवलपमेंट’ (FFD4) की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दौरान अपने संबोधन में कहा,
“एमडीबी का फोकस दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों पर होना चाहिए और इसके लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र जरूरी है ताकि हर फंड का सदुपयोग सुनिश्चित किया जा सके।”
वित्त मंत्री ने कहा कि भारत टैक्स सिस्टम को आधुनिक बनाने और अवैध वित्तीय प्रवाह पर लगाम लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समर्थन करता है। उन्होंने भारत में कर सुधारों और डिजिटल कर प्रशासन को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करते हुए बताया कि इससे न केवल राजस्व बढ़ा है बल्कि अनुपालन लागत में भी कमी आई है।
सीतारमण ने कहा,
“भारत की वित्तीय प्रणाली विशेष रूप से एमएसएमई सेक्टर के लिए समावेशिता को बढ़ावा देती है। हमने स्टार्टअप्स, पीपीपी मॉडल और इंफ्रास्ट्रक्चर में एक गतिशील ईकोसिस्टम तैयार किया है।”
उन्होंने यह भी बताया कि सरकार के लक्षित प्रयासों से अब तक 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है, और डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के ज़रिए समुदायों को सशक्त बनाया गया है।
साउथ-साउथ सहयोग पर भी भारत का फोकस
वित्त मंत्री ने कहा कि भारत साउथ-साउथ और त्रिकोणीय सहयोग के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस दौरान उन्होंने यूरोपीयन इन्वेस्टमेंट बैंक (EIB) की अध्यक्ष नादिया कैल्विनो से मुलाकात की और भारत में बैंक की मौजूदगी को और मजबूत करने पर चर्चा की।
बैठक में भारत में चल रही सात मेट्रो परियोजनाएं और एक शहरी रेल प्रोजेक्ट समेत जल और स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में निवेश को विविध बनाने की संभावनाएं भी टटोली गईं।
डिजिटलीकरण में भारत की उपलब्धियों की सराहना करते हुए, दोनों नेताओं ने तीसरे देशों में साझेदारी के नए रास्ते तलाशने पर सहमति जताई। कैल्विनो ने भारत के साथ ईआईबी की साझेदारी को और गहरा करने की उम्मीद भी जताई।
यह बयान न सिर्फ भारत की आर्थिक दृष्टि को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि भारत अब वैश्विक वित्तीय बहसों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने को तैयार है।
