लोक आस्था का महापर्व चैती छठ पूजा, नहाय-खाय से हुआ आरंभ

पटना। लोक आस्था का महापर्व चैती छठ पूजा आज मंगलवार से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। इस दिन व्रति स्नान करके नए वस्त्र पहनते हैं और चने की दाल, कद्दू की सब्जी और चावल का सेवन करते हैं। नहाय-खाय में घर की सफाई और शुद्धिकरण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

दूसरे दिन खरना में व्रति दिनभर उपवासी रहते हैं और शाम को गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिसे पूरे समुदाय में वितरित किया जाता है। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य दिया जाता है, जो इस पर्व का मुख्य दिन होता है। श्रद्धालु नदी या तालाब के किनारे जाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस दौरान बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल और गन्ना रखकर सूर्य देव की पूजा की जाती है। अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाता है, जिसके बाद प्रसाद वितरण और पारंपरिक गीतों के साथ उत्सव मनाया जाता है।

पटना जिला प्रशासन ने छठ पूजा के मद्देनजर 41 गंगा घाट और सात तालाबों को तैयार किया है। घाटों की सफाई, एप्रोच रोड, गंगा नदी में बेरीकेडिंग, शुद्ध जल, लाइटिंग, शौचालय और चेंजिंग रूम की व्यवस्था की गई है। गंगा घाटों पर मेडिकल टीम भी तैनात की गई है, जबकि एसडीआरएफ की टीम गंगा नदी में लगातार पेट्रोलिंग कर रही है। जिला प्रशासन ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे गंगा नदी में लगाए गए बेरीकेडिंग को न हटाएं।

नहाय-खाय के दिन पटना के गंगा घाटों पर छठव्रतियों की भारी भीड़ देखने को मिली। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई और गंगाजल अपने घर ले गए। बिहार के दरभंगा, भागलपुर, मुजफ्फरपुर, गया जैसे शहरों में भी गंगा और अन्य नदियों के घाटों पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ रही। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मईया की पूजा का प्रतीक है, जो धार्मिक के साथ-साथ सामाजिक एकता का भी संदेश देता है।

छठ पूजा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला चार दिवसीय महापर्व है। व्रतियों के अनुसार, यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है—चैत्र माह में चैती छठ और कार्तिक माह में कार्तिकी छठ। चैती छठ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है, जो आमतौर पर मार्च-अप्रैल में होती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी ने पांडवों की खोई हुई राजसत्ता वापस पाने और संतान प्राप्ति के लिए छठ व्रत किया था। एक अन्य कथा में भगवान राम और सीता ने अयोध्या लौटने पर कार्तिक माह में छठ पूजा की थी। स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार, छठी मईया को सूर्य देव की बहन और संतान रक्षक देवी माना जाता है। इस प्रकार, यह पर्व प्रकृति पूजा और स्त्री-शक्ति के सम्मान का भी प्रतीक है।

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