नई दिल्ली। गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने मंगलवार को लोकसभा में आप्रवास एवं विदेशी विषयक विधेयक-2025 विचारार्थ प्रस्तुत किया। इस विधेयक का उद्देश्य देश में आप्रवासन संबंधी कानूनों को आधुनिक और व्यवस्थित रूप देना है। विधेयक के लागू होने पर यह विदेशी विषयक अधिनियम-1946, आप्रवास (वाहक दायित्व) अधिनियम-2000, पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम-1920 और विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम-1939 की जगह लेगा।
यह विधेयक केंद्र सरकार को भारत में प्रवेश और प्रस्थान से जुड़े नियमों को विनियमित करने, पासपोर्ट और अन्य यात्रा दस्तावेजों की आवश्यकता सुनिश्चित करने तथा विदेशी नागरिकों से जुड़े मामलों में विशेष अधिकार प्रदान करने का प्रावधान करता है।
हालांकि, विधेयक के पेश किए जाने का कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी और तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत राय ने विरोध किया। तिवारी ने इसे संविधान में निहित मूल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए इसे वापस लेने या संयुक्त समिति को भेजने की मांग की। उन्होंने यह भी कहा कि यह विधेयक आप्रवासन अधिकारियों को विदेशी या भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति के भारत में प्रवेश को रोकने का अधिकार देता है, जिसके खिलाफ अपील की कोई व्यवस्था नहीं होगी।
सौगत राय ने इस विधेयक में गृहमंत्री अमित शाह की अनुपस्थिति पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने वाले संस्थानों को विदेशी नागरिकों से जुड़ी जानकारी देना अनिवार्य किया गया है।
विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा का उत्तर देते हुए गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि संसद को इस तरह का विधेयक लाने का पूरा अधिकार है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आवश्यक है। उन्होंने तर्क दिया कि दुनिया के अन्य देशों में भी विदेशियों को प्रवेश से रोके जाने पर अपील का प्रावधान नहीं होता।
राय ने यह भी स्पष्ट किया कि यह विधेयक किसी को प्रतिबंधित करने के लिए नहीं, बल्कि देश के कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए लाया गया है। स्वास्थ्य सेवाओं के संदर्भ में उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी एक आदेश के तहत स्वास्थ्य संस्थानों को विदेशियों की जानकारी साझा करनी होती है, जिसे अब विधेयक का आधिकारिक हिस्सा बनाया जा रहा है।
उन्होंने यह भी बताया कि यह विधेयक चार पुराने अधिनियमों का स्थान लेगा, जिनमें से तीन स्वतंत्रता से पहले के हैं और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाए गए थे। सरकार का उद्देश्य इन कानूनों में स्पष्टता लाना और उन्हें वर्तमान समय की जरूरतों के अनुसार बनाना है।