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रेपो रेट में बड़ी कटौती के साथ RBI ने दिखाई आर्थिक रफ्तार की राह, बैंकों को 2.5 लाख करोड़ की अतिरिक्त नकदी मिलेगी

मुंबई: देश की अर्थव्यवस्था को नई रफ्तार देने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार को एक बड़ा कदम उठाया है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा की अगुवाई में हुई मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में नीतिगत ब्याज दर रेपो रेट को 0.50 फीसदी घटाकर 5.50 फीसदी कर दिया गया है। इसके साथ ही नकदी संकट से जूझ रहे बैंकों को राहत देने के लिए सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में भी 1 फीसदी की कटौती की गई है, जिससे बैंकों के पास अब 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त नकदी उपलब्ध होगी।

गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक हालात अस्थिर हैं, लेकिन इसके बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। उन्होंने बताया कि मौजूदा हालात में ब्याज दरों में कटौती से आर्थिक विकास को सहारा मिलेगा और बैंकों के पास अतिरिक्त संसाधन होने से लोन सस्ते हो सकते हैं, जिसका सीधा फायदा आम उपभोक्ताओं और उद्योगों को मिलेगा।

मल्होत्रा ने यह भी जानकारी दी कि चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.5 फीसदी पर बरकरार रखा गया है, जबकि महंगाई दर के अनुमान को 4 फीसदी से घटाकर 3.7 फीसदी कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि भू-राजनीतिक तनाव और मौसम से जुड़ी अनिश्चितताएं विकास की राह में कुछ अड़चनें ज़रूर पैदा कर सकती हैं, लेकिन आरबीआई सतर्क है और हर संकेतक पर नजर रखे हुए है।

गवर्नर ने बताया कि चालू खाता घाटा (CAD) नियंत्रण में है और विदेशी मुद्रा भंडार 691.5 अरब डॉलर पर है, जो 11 महीनों तक की आयात जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। उन्होंने भरोसा जताया कि भारत अभी भी वैश्विक निवेशकों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना हुआ है, भले ही शुद्ध एफडीआई प्रवाह में थोड़ी गिरावट दर्ज की गई हो।

आरबीआई की यह लगातार तीसरी रेपो रेट कटौती है। फरवरी और अप्रैल में भी बैंक ने 0.25-0.25 फीसदी की कटौती की थी। इस बार की अपेक्षा से अधिक कटौती को लेकर बाजार में भी उत्साह का माहौल है। उम्मीद है कि इस फैसले से उद्योग जगत को नई ऊर्जा मिलेगी और घरेलू मांग को बढ़ावा मिलेगा।

गवर्नर ने संकेत दिया कि आगे की मौद्रिक नीति नीतियों को तय करने से पहले आरबीआई अब आर्थिक आंकड़ों और परिस्थितियों का सूक्ष्म विश्लेषण करेगा। फिलहाल, रेपो रेट में इस साल कुल 1 फीसदी की कटौती हो चुकी है, और इससे स्पष्ट है कि आरबीआई अब विकास को नई उड़ान देने के मूड में है।

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