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राजनीति के फेर में ढीली पड़ी तेलंगाना सरकार, नक्सली ऑपरेशन से पीछे हटने पर उठे सवाल

मुंबई/गडचिरौली। छत्तीसगढ़ में जारी बड़े नक्सल विरोधी अभियान से तेलंगाना सरकार ने अचानक हाथ पीछे खींच लिए, जिससे नक्सलियों को बच निकलने का मौका मिल गया। जनसंघर्ष समिति ने सरकार पर राजनीतिक दबाव में कार्रवाई रोकने का आरोप लगाया है।

समिति के अध्यक्ष दत्ता शिर्के के मुताबिक, करीब 3,000 नक्सली छत्तीसगढ़ के करेगुट्टा की पहाड़ियों में घिरे हुए थे, जिन्हें सीआरपीएफ, छत्तीसगढ़ पुलिस और तेलंगाना पुलिस ने चारों तरफ से घेर रखा था। इस ऑपरेशन में कुख्यात नक्सली हिड़मा, देवा, दामोदर, आज़ाद और सुजाता जैसे नाम शामिल थे। लेकिन ऐन मौके पर तेलंगाना पुलिस ऑपरेशन से पीछे हट गई, जिससे नक्सली तेलंगाना के जंगलों में फरार हो गए।

शिर्के ने तेलंगाना सरकार पर ‘राजनीतिक रोटियां सेकने’ और ‘देश से गद्दारी’ का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि अगर तेलंगाना पुलिस केंद्र के साथ मिलकर कार्रवाई करती, तो कांग्रेस भी अपने खोए नेताओं का बदला ले सकती थी।

इस ऑपरेशन में कुछ जवान हीट स्ट्रोक का शिकार होकर लौटे, जिससे अभियान से जुड़ी नई जानकारियां सामने आईं। अब सिर्फ छत्तीसगढ़ के जवान ही मोर्चा संभाले हुए हैं। भद्रादि कोत्तागुडेम के एएसपी विक्रांत सिंह ने भी पुष्टि की कि तेलंगाना पुलिस या ग्रेहाउंड्स इस ऑपरेशन में शामिल नहीं हैं।

शिर्के ने बताया कि पूर्व जस्टिस चंद्रकुमार और प्रोफेसर हरगोपाल जैसे नेताओं ने मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी को नक्सलियों से बातचीत की सलाह दी थी, जिससे सरकार पर दबाव बना और ऑपरेशन कमजोर पड़ा।

अंत में शिर्के ने केंद्र सरकार से अपील की कि केंद्रीय बल और तीनों राज्यों की पुलिस मिलकर कार्रवाई करें, ताकि राजनीति को ऑपरेशन में जगह न मिले और नक्सलवाद का सफाया हो सके। उन्होंने बताया कि वह इस मुद्दे पर जल्द ही केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र भेजेंगे।

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