नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के मेरठ में फुटबॉल सिलाई उद्योग में अब बाल मजदूरी नहीं हो रही है। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन (आईसीपी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 94 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्होंने अपने आसपास की फुटबॉल सिलाई इकाइयों में बाल मजदूरी का कोई मामला नहीं देखा। यह संकेत देता है कि मेरठ, जो देश के प्रमुख फुटबॉल निर्माण केंद्रों में से एक है, बाल मजदूरी की समस्या से लगभग मुक्त होने की कगार पर है।
अध्ययन में केवल पांच प्रतिशत लोगों ने ऐसे मामलों को देखने की बात कही है। यह शोध, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) के सहयोग से, ग्रामीण समाज विकास केंद्र और जनहित फाउंडेशन द्वारा किया गया।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत ने रिपोर्ट के निष्कर्षों को महत्वपूर्ण उपलब्धि बताते हुए कहा कि फुटबॉल सिलाई उद्योग में बाल श्रम लगभग समाप्त हो चुका है। उन्होंने इस सफलता का श्रेय सरकार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और संबंधित हितधारकों के संयुक्त प्रयासों को दिया।
गौरतलब है कि फुटबॉल सिलाई उद्योग में बाल मजदूरी लंबे समय से चिंता का विषय रही है। 1990 के दशक और 2000 के शुरुआती वर्षों में मेरठ और पंजाब के जालंधर में बच्चों के शोषण की खबरें सामने आई थीं। 2008 के एक अध्ययन में भी मेरठ में फुटबॉल सिलाई से जुड़े कार्यों में बड़े पैमाने पर बाल श्रम का खुलासा हुआ था, जहां बच्चों को कठिन परिस्थितियों में काम कराया जाता था। लेकिन हालिया रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि अब हालात में बड़ा बदलाव आया है।