नई दिल्ली। मेघालय की वादियों में फैली हरियाली के बीच जब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ‘लिविंग रूट ब्रिज’ तक पहुँचीं, तो उनका स्वागत सिर्फ ग्रामीणों ने ही नहीं, बल्कि प्रकृति की centuries पुरानी बुद्धिमत्ता ने भी किया। मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स जिले के सीज गांव में मौजूद ये अद्भुत पुल इंसानी सूझबूझ और प्रकृति के गहरे रिश्ते की मिसाल हैं — और यही वजह है कि वित्त मंत्री ने इसे ‘स्थायी भविष्य की दिशा में एक बेहतरीन कदम’ बताया।
अपने दौरे के दौरान सीतारमण ने गांव के बुजुर्गों, स्थानीय नेताओं और ‘पेमेंट फॉर इकोसिस्टम सर्विसेज’ कार्यक्रम से जुड़े लाभार्थियों से भी मुलाकात की। इस कार्यक्रम को वर्ल्ड बैंक, केएफडब्ल्यू और एडीबी जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों का समर्थन प्राप्त है, और इसका मकसद पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान को संरक्षित रखना है।
सीतारमण ने इस बात की सराहना की कि कैसे ग्रामीण समुदायों ने जीवित वृक्षों को नुकसान पहुंचाए बिना प्राकृतिक पुल तैयार किए हैं जो नदियों को पार करने का एक अनूठा तरीका प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा, “जब पूरी दुनिया सतत समाधानों की तलाश में है, तब सीज जैसे गांव दिखा रहे हैं कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर क्या कुछ संभव है।”
उन्होंने लिविंग रूट ब्रिज को यूनेस्को की विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दिलाने के लिए समुदाय द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “यह मान्यता दिखावे के लिए नहीं, बल्कि दुनिया को यह बताने के लिए है कि आपने प्रकृति के साथ मिलकर पहले ही समाधान खोज लिया था।”
वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि मेघालय के ये रूट ब्रिज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सस्टेनेबल लाइफस्टाइल’ दृष्टिकोण का जीवंत उदाहरण हैं और हमारे स्वदेशी समुदाय पहले से ही इस दर्शन को जी रहे हैं।
दौरे के अगले चरण में सीतारमण सोहबर गांव पहुँचीं, जो वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (वीवीपी) के तहत विकास की दिशा में अग्रसर है। यहाँ उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा, “सीमावर्ती गांव भारत का अंत नहीं, बल्कि शुरुआत हैं। ये हमारी सीमाओं के प्रहरी हैं, और इन्हें पूरी प्राथमिकता मिलनी चाहिए।”
सोहबर में उन्होंने विकास के चार प्रमुख क्षेत्रों की घोषणा की — बेहतर सड़कें, मजबूत डिजिटल और टेलीकॉम कनेक्टिविटी, टीवी कवरेज और बिजली की उपलब्धता।
मेघालय के जमीनी अनुभवों से प्रेरणा लेते हुए वित्त मंत्री ने न केवल इस विरासत की सराहना की, बल्कि यह संदेश भी दिया कि स्वदेशी ज्ञान और आधुनिक दृष्टिकोण मिलकर दुनिया को नई दिशा दे सकते हैं।