कोलकाता। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में भड़की सांप्रदायिक हिंसा ने एक ही परिवार से दो कीमती जिंदगियां छीन लीं—हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास। इस दर्दनाक घटना के बाद राज्य सरकार ने मुआवज़ा घोषित किया, लेकिन पीड़ित परिवार ने यह कहकर सरकार की सहायता को ठुकरा दिया कि अब इस मदद का कोई मोल नहीं बचा।
परिजनों का कहना है, “अगर पुलिस समय पर पहुंचती, तो शायद आज हमारे पिता और भाई हमारे साथ होते। अब मुआवज़े का क्या अर्थ? जिनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती, उनके बदले रुपये क्या कर सकते हैं?”
घटना के बाद इलाके में खौफ का साया अब भी मंडरा रहा है। हालात इतने भयावह हैं कि 15 अप्रैल को जब श्राद्ध संस्कार होना था, तो पुजारी और नाई तक डर के मारे नहीं आए।
इस बीच राष्ट्रीय महिला आयोग ने मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए अपनी टीम को कोलकाता भेजने की तैयारी कर ली है। टीम हिंसा से प्रभावित परिवारों की महिलाओं से मुलाकात कर उनकी स्थिति को समझेगी और स्थानीय प्रशासन—जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक—से भी बातचीत करेगी।
गौरतलब है कि यह हिंसा 12 अप्रैल को शमशेरगंज इलाके में उस वक्त भड़की थी जब वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा था। भीड़ ने हरगोबिंद दास और उनके बेटे पर उनके घर में घुसकर हमला किया, जिससे उनकी जान चली गई।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुस्लिम समुदाय के नेताओं के साथ बैठक में मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपये मुआवज़ा देने की घोषणा की थी। लेकिन गुरुवार को दास परिवार ने इस पेशकश को ठुकरा दिया।