नई दिल्ली। राज्यसभा ने गुरुवार देर रात मणिपुर में लागू राष्ट्रपति शासन के वैधानिक प्रस्ताव को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। वक्फ संशोधन विधेयक पारित होने के बाद आधी रात को हुई चर्चा में मणिपुर के हालात पर लगभग पौने दो घंटे तक बहस चली, जिसमें विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की।
चर्चा के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि मणिपुर में राष्ट्रपति शासन 13 फरवरी को लागू किया गया था। मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद किसी भी दल ने सरकार बनाने का दावा नहीं किया, जिसके चलते अनुच्छेद 356(1) के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वहां इससे पहले ही हिंसा में काफी कमी आ चुकी थी और अब स्थिति सामान्य हो रही है।
गृह मंत्री ने कहा कि जैसे ही हालात पूरी तरह सामान्य हो जाएंगे, संवाद प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी और राष्ट्रपति शासन समाप्त कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद शुरू हुई जातीय हिंसा के पीछे आरक्षण से जुड़ा विवाद था, जिसे जल्द ही नियंत्रित कर लिया गया।
अमित शाह ने चर्चा के दौरान यह भी बताया कि मणिपुर की स्थिति को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह पूरी तरह जातीय संघर्ष का मामला है। उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना करते हुए कहा कि 2004 से 2014 के दौरान पूर्वोत्तर में 11,000 से ज्यादा लोगों की हत्या हुई थी, जबकि मौजूदा सरकार के दौरान हिंसा में 70 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने चर्चा में भाग लेते हुए प्रधानमंत्री से मणिपुर दौरे की अपील की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और कई सामाजिक संगठनों ने वहां का दौरा किया है, लेकिन प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति गंभीर चिंता का विषय है।
चर्चा में भाजपा, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई (एम), डीएमके, आम आदमी पार्टी, राजद, आईयूएमएल और शिवसेना (उद्धव गुट) समेत कई दलों के सांसदों ने हिस्सा लिया। अंततः सदन ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन के वैधानिक संकल्प को पारित कर दिया, जिसे लोकसभा पहले ही मंजूरी दे चुकी है।