रायपुर: केंद्र सरकार की बहुप्रचारित भारत माला परियोजना के तहत बनाए जा रहे रायपुर-विशाखापट्टनम एक्सप्रेस-वे में करोड़ों के मुआवजा घोटाले ने पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) ने मंगलवार को दशमेश बिल्डर्स के दफ्तर पर छापा मारा, जहाँ दस्तावेजों की गहन जांच की गई। यह वही कार्यालय है जिसे पहले ही 25 अप्रैल को सील किया जा चुका था।
220 करोड़ से ज्यादा का मुआवजा घोटाला, जमीन के नाम पर हुआ बड़ा खेल
शुरुआती जांच में जहाँ घोटाले की राशि 43 करोड़ बताई गई थी, वहीं विस्तृत जांच में यह आंकड़ा बढ़कर 220 करोड़ रुपये से अधिक तक पहुंच गया है। अब तक 164 करोड़ से ज्यादा के संदिग्ध लेनदेन के प्रमाण मिल चुके हैं। आरोप है कि फर्जी दस्तावेजों और साजिशन जमीन टुकड़ों के ज़रिए मुआवजे की रकम को कई गुना बढ़ा कर हड़पा गया।
जांच में सामने आया कि सिर्फ 32 प्लॉट के लिए 35 करोड़ का मुआवजा बनता था, लेकिन उन्हें छोटे-छोटे 142 टुकड़ों में बांटकर 326 करोड़ का मुआवजा दिखाया गया। इसमें से 248 करोड़ की राशि का भुगतान भी कर दिया गया था, और शेष 78 करोड़ के क्लेम के दौरान यह घोटाला उजागर हुआ।
बिल्डर, अफसर और भू-माफिया का गठजोड़
इस मामले की मुख्य कड़ी हैं दशमेश डेवलपर्स के मालिक हरमीत सिंह खनूजा, जिन्हें कुछ दिन पहले ही गिरफ्तार किया गया। उनकी कंपनी दशमेश इंस्टावेंचर प्राइवेट लिमिटेड में भावना कुर्रे भी साझेदार हैं, जो अभनपुर के तत्कालीन तहसीलदार शशिकांत कुर्रे की पत्नी हैं।
ईओडब्ल्यू और एसीबी की संयुक्त टीम ने इससे पहले रायपुर और दुर्ग जिले के 18 से 20 ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस मामले में अब तक हरमीत खनूजा, उमा तिवारी, केदार तिवारी और विजय जैन को गिरफ्तार कर विशेष अदालत से 6 दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया है।
राजनीतिक दबाव के बाद खुला मामला, सीबीआई जांच की मांग
सूत्रों के मुताबिक, इस घोटाले पर दिल्ली से दबाव आने के बाद नेशनल हाईवे अथॉरिटी के चीफ विजिलेंस ऑफिसर ने रायपुर कलेक्टर को जांच के निर्देश दिए। मामला विधानसभा में भी गूंजा, जहाँ नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत ने इसे गंभीर बताते हुए सीबीआई जांच की मांग उठाई।
भारत सरकार की इस महत्वाकांक्षी परियोजना से रायपुर और विशाखापट्टनम के बीच की दूरी 546 किलोमीटर से घटकर 463 किलोमीटर रह जाएगी। लेकिन अफसरों और दलालों की साठगांठ ने इस योजना को भ्रष्टाचार की दलदल में खड़ा कर दिया है।