नई दिल्ली। भारत और फ्रांस के बीच 26 अत्याधुनिक राफेल मरीन लड़ाकू विमानों की खरीद को लेकर 63 हजार करोड़ रुपये के समझौते पर सोमवार को हस्ताक्षर हुए। इस सौदे से भारतीय नौसेना की ताकत और अधिक मजबूत होगी। इस महत्वपूर्ण आयोजन में भारत में फ्रांस के राजदूत और भारतीय रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह के अलावा नौसेना के उप प्रमुख वाइस एडमिरल के स्वामीनाथन भी उपस्थित रहे।
भारत और फ्रांस के बीच यह सौदा भारतीय सुरक्षा के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सुरक्षा मामलों की केंद्रीय कैबिनेट समिति (CCS) ने 9 अप्रैल को इस बड़े सौदे को मंजूरी दी थी। इसके तहत भारतीय नौसेना को 22 सिंगल-सीटर और 4 ट्विन-सीटर राफेल मरीन विमानों की डिलीवरी मिलेगी, जिससे भारतीय नौसेना की सामरिक क्षमता में एक नई शक्ति जुड़ेगी।
इस सौदे के तहत फ्रांस को 37 महीनों के भीतर पहला राफेल मरीन विमान भारतीय नौसेना को देने की जिम्मेदारी होगी। भारतीय नौसेना ने स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत के लिए फ्रांसीसी राफेल मरीन विमानों को चुना है, जबकि पहले बोइंग एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट का चयन किया गया था।
यह सौदा भारतीय नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि इसमें 26 विमानों की खरीद की जाएगी, जबकि पहले 57 विमानों की योजना थी। यह सौदा सरकार-से-सरकार के माध्यम से किए गए आपातकालीन खरीद नीति के तहत सम्पन्न हुआ है।
राफेल मरीन की विशेषताएँ इसे भारतीय नौसेना के विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत के लिए आदर्श बनाती हैं। इसके समुद्री संस्करण ने पहले ही भारतीय नौसेना द्वारा गोवा स्थित आईएनएस हंसा में परीक्षण भी पास किया है। राफेल मरीन, जो स्की-जंप टेकऑफ की क्षमता से लैस है, बाहरी भार के साथ पूर्ण आंतरिक ईंधन लेकर भी उड़ान भर सकता है, जो इसे खास बनाता है।
फ्रांस की डसॉल्ट एविएशन कंपनी को पूरा विश्वास है कि राफेल मरीन भारतीय नौसेना के लिए एक मजबूत और विश्वसनीय विकल्प साबित होगा। पहले से ही ग्रीस, इंडोनेशिया और UAE की सेनाएं इसका इस्तेमाल कर रही हैं, और भारतीय नौसेना का मानना है कि यह विमान उनकी विशेष जरूरतों को बखूबी पूरा करेगा।
इस सौदे से भारतीय नौसेना को पुराने रूसी मिग-29 विमानों को रिप्लेस करने में मदद मिलेगी, जिससे उसकी युद्ध क्षमता में और सुधार होगा।