नई दिल्ली: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने राष्ट्रपति द्वारा सुप्रीम कोर्ट को भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि यह केंद्र सरकार की तरफ से संविधान को कमजोर करने और राज्य सरकारों को नियंत्रित करने की कोशिश है।
स्टालिन ने साफ शब्दों में कहा कि यह संदर्भ दिखाता है कि तमिलनाडु के राज्यपाल भाजपा के इशारे पर काम कर रहे हैं और राज्य सरकार के विधायी कार्यों में जानबूझकर बाधा डाली जा रही है।
“राज्यपालों की टाइमलाइन तय करने में दिक्कत क्यों?”
स्टालिन ने सवाल उठाया –
“क्या राज्यपालों को बिल पास करने के लिए समयसीमा देना संविधान के खिलाफ है? या केंद्र की भाजपा सरकार अपने राज्यपालों के जरिए राज्यों की चुनी हुई सरकारों को कमजोर करना चाहती है?”
उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम को राज्य विधानसभाओं को निष्क्रिय बनाने की एक साजिश करार दिया और कहा कि देश आज एक संवैधानिक संकट के मोड़ पर खड़ा है।
विपक्षी राज्यों को एकजुट होने की अपील
सीएम स्टालिन ने सभी गैर-भाजपा शासित राज्यों और विपक्षी दलों के नेताओं से इस “कानूनी लड़ाई” में एकजुट होने की अपील की।
“तमिलनाडु मजबूती से लड़ेगा और जीतेगा भी,” – उन्होंने अपने बयान में यह विश्वास जताया।
क्या है पूरा मामला?
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने हाल ही में संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट को एक 14-सूत्रीय प्रेसिडेंशियल रेफरेंस भेजा है। इसमें यह जानने की मांग की गई है कि क्या कोर्ट राज्यपालों को उनके पास आरक्षित बिलों पर निर्णय लेने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित कर सकता है।
यह मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 से जुड़ा है, जहां राज्यपालों को बिल पर विचार करने के लिए कोई तय समय नहीं दिया गया है। अब कोर्ट से स्पष्टता मांगी गई है कि इस व्यवस्था को कैसे संतुलित किया जा सकता है।