ब्रासीलिया/वाशिंगटन। अमेरिका और ब्राजील के बीच टैरिफ को लेकर तनाव बढ़ता जा रहा है। ब्राजील के राष्ट्रपति लुईज इनासियो लूला दा सिल्वा ने स्पष्ट आदेश जारी करते हुए कहा है कि अमेरिका से डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भेजे गए विवादित पत्र को राष्ट्रपति कार्यालय में स्वीकार नहीं किया जाएगा। यह पत्र 50 फीसदी टैरिफ बढ़ाने से जुड़ा है, जिसे ‘बोल्सोनारो इफेक्ट टैरिफ’ कहा जा रहा है।
लूला इस पत्र से बेहद नाराज़ हैं और उनका मानना है कि ट्रंप यह सब ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो को बचाने के लिए कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप, बोल्सोनारो के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों को प्रभावित करने के लिए अमेरिका-ब्राजील व्यापार पर दबाव बना रहे हैं।
राष्ट्रपति लूला ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका यह टैरिफ लागू करता है, तो ब्राजील भी जवाबी कर लगाएगा। उन्होंने यहां तक कह दिया कि जरूरत पड़ी तो इस साल की शुरुआत में मंजूर किए गए ‘पारस्परिकता कानून’ को भी लागू किया जाएगा।
इस मुद्दे ने ब्राजील की राजनीति में भी उबाल ला दिया है। सीनेट के अध्यक्ष डेवी अल्कोलुम्ब्रे और डिप्टी स्पीकर ह्यूगो मोट्टा ने लूला का समर्थन करते हुए कहा कि देश की संप्रभुता और रोजगारों की रक्षा के लिए सख्त कदम उठाना जरूरी है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह पूरा मामला अब एक संभावित ‘टैरिफ युद्ध’ की ओर बढ़ रहा है। सीबीएस न्यूज ने भी आशंका जताई है कि ट्रंप अपनी पुरानी नीति के मुताबिक जवाबी कार्रवाई करेंगे, जो पहले भी कई देशों के साथ देखी जा चुकी है।
इस बीच, लूला ने अपने राजनयिकों को साफ निर्देश दिए हैं कि अगर ट्रंप का कोई भी पत्र राष्ट्रपति भवन पहुंचे, तो उसे फौरन लौटा दिया जाए।
राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर कार्लोस मेलो का कहना है कि बोल्सोनारो के मुकदमों को लेकर ट्रंप की दिलचस्पी ब्राजील की न्यायिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़ा करती है। वहीं, खुद बोल्सोनारो ने सर्वोच्च न्यायालय पर उन्हें ‘राजनीतिक रूप से प्रताड़ित’ करने का आरोप लगाया है।
इस घटनाक्रम में अमेरिकी राजनीति भी गर्माई हुई है। ओरेगन के डेमोक्रेटिक सीनेटर रॉन वाइडन ने कहा है कि ट्रंप निजी दुश्मनी के चलते अमेरिकी अर्थव्यवस्था को जोखिम में डाल रहे हैं।
लूला ने कड़े शब्दों में कहा, “अगर ट्रंप ब्राजील पर टैरिफ लगाते हैं तो इसके राजनीतिक जिम्मेदार बोल्सोनारो होंगे। देश की नीतियां अब किसी दोस्ती या दबाव में नहीं चलेंगी।”
अब देखना यह है कि क्या यह कूटनीतिक तनाव किसी बड़े व्यापारिक संघर्ष में बदलता है या दोनों देश किसी समाधान की ओर बढ़ते हैं।