पटना। बाल श्रम के खिलाफ देशभर में चल रही मुहिम में बिहार ने बड़ी कामयाबी हासिल की है। वर्ष 2024-25 के दौरान बाल मजदूरी से आज़ाद कराए गए बच्चों की संख्या के लिहाज से बिहार देश में दूसरे स्थान पर रहा है। देश के 24 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में हुए अभियानों में कुल 53,651 बच्चों को बाल मजदूरी से छुड़ाया गया, जिनमें से 3,974 बच्चे बिहार से मुक्त कराए गए।
इस अभियान में तेलंगाना सबसे आगे रहा, जहां 11,063 बच्चों को आज़ादी दिलाई गई। उसके बाद क्रमशः बिहार, राजस्थान (3,847), उत्तर प्रदेश (3,804) और दिल्ली (2,588) का स्थान रहा।
यह आंकड़े ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ (JRC) के सहयोग से तैयार की गई रिपोर्ट से सामने आए हैं। इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन के अनुसंधान विंग सी-लैब द्वारा जारी रिपोर्ट ‘बिल्डिंग द केस फॉर ज़ीरो’ में यह जानकारी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, 90% बच्चे ऐसे कामों में लगे थे, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और भारत सरकार ने बाल श्रम के ‘सबसे भयावह रूप’ के तौर पर चिन्हित किया है।
रिपोर्ट बताती है कि इन अभियानों के दौरान 7,632 छापे अकेले तेलंगाना में मारे गए, जबकि उत्तर प्रदेश में 2,469, राजस्थान में 2,453 और मध्य प्रदेश में 2,335 छापे डाले गए। कुल मिलाकर, इन छापों से 38,388 मुकदमे दर्ज किए गए और 5,809 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से 85% मामले बाल श्रम से जुड़े थे।
रिपोर्ट में ये भी सिफारिश की गई है कि—
- खतरनाक उद्योगों की सूची का विस्तार हो,
- सरकारी खरीद में बाल श्रम को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाए,
- हर राज्य अपनी ज़रूरतों के अनुसार नीति बनाए,
- और 2030 तक बाल मजदूरी खत्म करने के लक्ष्य (SDG 8.7) को प्राथमिकता दी जाए।
जेआरसी के राष्ट्रीय संयोजक रवि कांत ने कहा, “इतनी बड़ी संख्या में बच्चे आज भी बाल श्रम के सबसे खतरनाक रूपों में लगे हैं। यह इस बात का संकेत है कि सरकार और समाज के संयुक्त प्रयासों के बावजूद अभी भी हमारा राष्ट्रीय लक्ष्य अधूरा है।”
भारत अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की कन्वेंशन 182 का हस्ताक्षरकर्ता है, जो खतरनाक बाल श्रम को समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताता है।
यह रिपोर्ट न सिर्फ आंकड़ों का दस्तावेज है, बल्कि बाल श्रम के खिलाफ एक सशक्त संघर्ष की तस्वीर भी है। लेकिन जब तक कानून का भय और जिम्मेदारी की भावना जमीन पर लागू नहीं होती, तब तक यह संघर्ष अधूरा ही रहेगा।