पाकिस्तान में फिर उफना बलूचिस्तान का जख्म: दो युवकों को सेना ने उठाया, बंद रही आधा प्रांत

क्वेटा: बलूचिस्तान के हुब चौकी इलाके में एक बार फिर मानवाधिकारों की धज्जियां उड़ाई गईं। पाकिस्तानी सेना ने दो बलूच युवकों को उनके घरों से जबरन उठा लिया, जिससे पूरे इलाके में गुस्सा भड़क गया। यह घटना ऐसे समय हुई है जब बलूचिस्तान में जबरन गायब किए जाने की घटनाएं लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं।

बलूच नेशनल मूवमेंट के मानवाधिकार संगठन ‘पांक’ ने शुक्रवार को बताया कि मशकई के रहने वाले लियाकत मुस्तफा को 3 जुलाई की रात अचानक एक छापेमारी में अगवा कर लिया गया। हैरानी की बात ये है कि उनके पिता गुलाम मुस्तफा को भी 2016 में इसी तरह से गायब कर दिया गया था और वे अब तक लापता हैं।

वहीं, उमर अत्ता नाम के युवक को भी उसी इलाके से उसी अंदाज़ में उठाया गया। उन्हें भी पहले 2016 में जबरन गायब किया गया था, और रिहाई के वक्त उनके शरीर पर यातनाओं के गंभीर निशान थे।

मानवाधिकार संगठनों ने इन घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि यह सिलसिला बलूचिस्तान में सेना के द्वारा चलाए जा रहे जबरन अपहरण और दमन के लंबे और संगठित अभियान का हिस्सा है।

इस अमानवीय कार्रवाई के विरोध में शुक्रवार को बलूच यकजेहती समिति (BYC) के आह्वान पर चाघी, नोकुंडी और दलबंदिन समेत बलूचिस्तान के कई हिस्सों में पूर्ण बंद हड़ताल रही। यह विरोध हाल ही में बलूच युवक जीशान जहीर की कथित न्यायेतर हत्या के खिलाफ था। जीशान के पिता भी 2015 से लापता हैं और अब सरकार ने बेटे की लाश लौटा दी।

बीवाईसी ने कराची के लियारी में जीशान की हत्या के विरोध में शांतिपूर्ण मार्च का आयोजन किया, लेकिन सिंध पुलिस ने प्रदर्शन शुरू होने से पहले ही कार्रवाई करते हुए महिला कार्यकर्ता अमना बलूच समेत तीन अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया। हालांकि, मानवाधिकार संगठनों के विरोध के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।

बीवाईसी ने कहा है कि यह पहली बार नहीं है जब कराची में बलूचों की आवाज़ को दबाया गया हो। उनका कहना है कि यह सरकार की सुनियोजित रणनीति है, जिसके तहत बलूचों की पहचान, अधिकार और आवाज़ को systematically कुचला जा रहा है।

बलूचिस्तान के मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि पाकिस्तानी सेना लंबे समय से प्रांत में बलपूर्वक कार्रवाई कर रही है — जिसमें रात के समय छापेमारी, झूठे मुकदमे, जबरन गिरफ्तारियां और ‘उठाओ और मार दो’ जैसे तौर-तरीके शामिल हैं।

इन घटनाओं ने एक बार फिर बलूचिस्तान के दर्द को दुनिया के सामने ला खड़ा किया है — जहां न्याय की आवाज़ गूंजती तो है, लेकिन सुनी नहीं जाती।

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