वाराणसी। प्रयागराज महाकुंभ से लौटे श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा के नागा संतों ने पंचकोशी यात्रा संपन्न कर रविवार को श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में हाजिरी लगाई। उनके आगमन से दरबार “हर-हर महादेव” और “बम-बम भोले” के जयघोष से गूंज उठा।
महानिर्वाणी अखाड़ा के नेतृत्व में संतों ने पांच दिवसीय यात्रा के बाद मणिकर्णिका चक्र पुष्कर्णी तीर्थ कुंड में संकल्प विसर्जित किया। इसके पश्चात विधि-विधान से बाबा विश्वनाथ के दर्शन और पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। रंगभरी एकादशी से पहले, नागा संतों ने बाबा के गौना की खुशी में उनके रजत विग्रह पर हल्दी और पुष्प अर्पित किए।
करीब 75 किलोमीटर लंबी पंचकोशी यात्रा का आरंभ मणिकर्णिका घाट पर संकल्प लेकर हुआ था। महाकुंभ में अमृत स्नान के पश्चात नागा साधुओं ने रामेश्वर, पांचों पांडव होते हुए अंतिम पड़ाव कपिलधारा तक यात्रा की। परंपरा अनुसार, इस दौरान संतों ने विभिन्न मंदिरों में दर्शन-पूजन किया और रात्रि विश्राम के दौरान भजन-कीर्तन का आयोजन किया। अंततः मणिकर्णिका घाट पहुंचकर संकल्प पूर्ण किया गया।
पंचकोशी यात्रा का धार्मिक महत्व
वाराणसी की पंचकोशी यात्रा एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है, जिसमें श्रद्धालु लगभग 80 किलोमीटर की परिक्रमा करते हैं। इस यात्रा का उद्देश्य काशी क्षेत्र के प्रमुख मंदिरों और तीर्थस्थलों का दर्शन कर पुण्य अर्जित करना होता है। परिक्रमा मार्ग में 108 शिवलिंग सहित कई देवी-देवताओं के मंदिर स्थित हैं, जो भक्तों की आस्था का केंद्र हैं।
महाकुंभ 2025 के समापन के बाद नागा साधु और संत काशी में एकत्रित हुए। परंपरा के अनुसार, महाकुंभ स्नान के पश्चात वे काशी आकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन और गंगा स्नान करते हैं। पंचकोशी परिक्रमा पूरी करने के बाद, संत काशी विश्वनाथ मंदिर में होली का उत्सव मनाते हैं और फिर अपने अखाड़ों एवं साधना स्थलों की ओर प्रस्थान करते हैं।