नई दिल्ली। देश भर में बुधवार को ट्रेड यूनियनों की राष्ट्रव्यापी हड़ताल का व्यापक असर देखने को मिला। बैंकिंग, डाक, बिजली और सार्वजनिक परिवहन जैसी अहम सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। हड़ताल का आह्वान 10 केंद्रीय श्रम संगठनों ने किया था, जिन्होंने नई श्रम संहिताओं के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए इसे ‘आम हड़ताल’ का रूप दिया।
हालांकि, वाणिज्यिक बाजारों पर इसका खास असर नहीं पड़ा, लेकिन आम जनजीवन जरूर अस्त-व्यस्त हो गया। अखिल भारतीय मजदूर संघ कांग्रेस की महासचिव अमरजीत कौर ने बताया कि पश्चिम बंगाल, केरल, झारखंड और कर्नाटक सहित कई राज्यों से हड़ताल की तस्वीरें और सूचनाएं सामने आई हैं।
उन्होंने कहा कि कोयला और तांबा खनन कार्यों पर भी इसका असर पड़ने की आशंका है, जबकि कई राज्यों में बस सेवाएं ठप हैं। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के किसान संगठन भी इस आंदोलन में कूद पड़े हैं और अपने-अपने क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
ट्रेड यूनियनों की प्रमुख मांगों में चारों श्रम संहिताओं को रद्द करना, ठेका प्रथा खत्म करना, सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण पर रोक, न्यूनतम मजदूरी को 26,000 रुपये प्रतिमाह करना शामिल है। इसके साथ ही किसानों के लिए फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी और ऋण माफी की मांग भी इस आंदोलन का हिस्सा बनी है।
इस बड़े आंदोलन ने सरकार के सामने एक बार फिर श्रमिक और किसान वर्ग की मांगों को जोरदार तरीके से रखा है, जिससे आने वाले दिनों में श्रम नीतियों को लेकर बहस और तेज हो सकती है।