श्योपुर/भोपाल। मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान से एक और चिंताजनक खबर सामने आई है। नामीबिया से लाई गई मादा चीता ‘नाभा’ की शनिवार को मौत हो गई। एक हफ्ते पहले घायल मिली नाभा को बचाने की हरसंभव कोशिश की गई, लेकिन सफलता नहीं मिली। नाभा की मौत के बाद अब कूनो में केवल 26 चीते शेष बचे हैं।
8 वर्षीय नाभा को सॉफ्ट रिलीज बोमा के भीतर गंभीर हालत में पाया गया था। अधिकारियों के मुताबिक, वह संभवतः शिकार की कोशिश में बुरी तरह घायल हो गई थी। उसके दोनों बाएं पैर—आगे और पीछे—में फ्रैक्चर था, साथ ही शरीर पर कई गहरे जख्म और खरोंचें थीं। कुछ चोटें आपसी संघर्ष का भी संकेत दे रही हैं।
वन विभाग ने बताया कि नाभा का एक हफ्ते से इलाज चल रहा था, लेकिन उसकी हालत में सुधार नहीं आया। शनिवार सुबह उसने अंतिम सांस ली। अब पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद ही मौत के असल कारणों का खुलासा हो सकेगा।
क्या कहती है चीता परियोजना की स्थिति?
नाभा की मौत के बाद अब कूनो में 9 वयस्क चीते (6 मादा, 3 नर) और भारत में जन्मे 17 शावक बचे हैं। अधिकारियों के अनुसार, इनमें से 16 चीते जंगल में स्वतंत्र रूप से विचरण कर रहे हैं और उनका अनुकूलन संतोषजनक है। वहीं, वीरा और निरवा नाम की दो मादा चीते अपने नवजात शावकों के साथ स्वस्थ हैं और स्वाभाविक व्यवहार कर रही हैं। गांधीसागर भेजे गए दो नर चीते भी निगरानी में हैं और ठीक हैं।
पुनर्वास योजना पर फिर उठे सवाल
करीब 70 साल पहले भारत से विलुप्त हो चुके चीतों की वापसी की महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत 17 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर हुई थी, जब नामीबिया से 8 चीते लाकर कूनो में बसाए गए। इसके बाद फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से और 12 चीते लाए गए थे। हालांकि, शुरुआत से अब तक कई चीतों की असामयिक मौतों ने इस परियोजना की सफलता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या सीमित जगह बन रही है संघर्ष की वजह?
वन विभाग के कुछ अधिकारियों का मानना है कि कूनो पार्क में सीमित स्थान और बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते चीतों के बीच संघर्ष के मामले बढ़े हैं। ऐसे में भविष्य में चीता संरक्षण और प्रबंधन की रणनीति पर दोबारा विचार करना जरूरी हो सकता है।