बेंगलुरु। कर्नाटक के बहुचर्चित आदिवासी कल्याण घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बुधवार को बड़ी कार्रवाई करते हुए कांग्रेस के दिग्गज नेताओं से जुड़े ठिकानों पर ताबड़तोड़ छापेमारी की। यह छापे बेल्लारी और बेंगलुरु में कुल आठ स्थानों पर मारे गए, जिनमें कांग्रेस सांसद ई. तुकाराम और तीन विधायकों – ना. रा. भरत रेड्डी, जे. एन. गणेश उर्फ कांपली गणेश और पूर्व मंत्री बी. नागेंद्र के ठिकाने शामिल हैं।
ईडी की टीम ने पूर्व मंत्री नागेंद्र के निजी सचिव गोवर्धन के घर पर भी दस्तक दी। सूत्रों के मुताबिक, करीब 15 अधिकारियों की विशेष टीम सुबह से ही सक्रिय थी और पांच जगह बेल्लारी तथा तीन जगह बेंगलुरु में छापेमारी की गई। हालांकि, अभी तक ईडी की ओर से इस छापेमारी की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
गौरतलब है कि बी. नागेंद्र पहले ही इस घोटाले में जेल की हवा खा चुके हैं। उन्हें जुलाई 2024 में गिरफ्तार किया गया था और करीब तीन महीने की न्यायिक हिरासत के बाद वह जमानत पर रिहा हुए थे। जेल से बाहर आने के बाद नागेंद्र ने आरोप लगाया कि उन्हें राजनीतिक कारणों से परेशान किया गया और भाजपा उन पर दबाव बनाकर सरकार को अस्थिर करना चाहती है।
इस घोटाले की शुरुआत तब हुई जब आदिवासी कल्याण बोर्ड के लेखा अधिकारी पी. चंद्रशेखरन ने आत्महत्या कर ली। उनके सुसाइड नोट ने मामले को उछाल दिया, जिसमें उन्होंने अधिकारियों और एक मंत्री पर गंभीर आरोप लगाए थे। नोट में यह भी जिक्र था कि उन पर घोटाले को दबाने का दबाव बनाया जा रहा था।
ईडी की जांच में खुलासा हुआ है कि आदिवासी कल्याण निगम के खातों से करीब 89.62 करोड़ रुपये की रकम फर्जी खातों में ट्रांसफर कर दी गई थी। इन खातों में अधिकांश आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बताए जा रहे हैं। जांच में सामने आया कि यह धन बाद में फर्जी कंपनियों के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल हुआ। इस पूरे मामले में बी. नागेंद्र को मास्टरमाइंड बताया गया है, जिन्होंने 24 अन्य लोगों के साथ मिलकर योजना को अंजाम दिया।
हालांकि, कांग्रेस सरकार द्वारा गठित SIT ने नागेंद्र को क्लीन चिट दे दी थी, और उनके नाम को चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया था। इससे राजनीतिक हलकों में नए सिरे से विवाद खड़ा हो गया था। भाजपा का कहना है कि खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया इस घोटाले में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं क्योंकि वित्त विभाग भी उनके पास है और 89.6 करोड़ की इस हेराफेरी को उन्होंने ही मंजूरी दी थी।
जांच अब एक बार फिर गरमा गई है और ईडी की ताजा छापेमारी से साफ है कि मामला अभी खत्म नहीं हुआ है। आने वाले दिनों में इस पर कर्नाटक की राजनीति और केंद्र की नजर बनी रहेगी।