नई दिल्ली। पैरा एथलीट रमेश शानमुगम भारतीय क्रिकेट के दिग्गज एमएस धोनी को अपना आदर्श मानते हैं। उनका कहना है कि धोनी से उन्होंने कठिन परिस्थितियों में संयम और अनुशासन बनाए रखना सीखा, जिसका लाभ उन्हें पैरा एथलेटिक्स में मिल रहा है।
खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2025 में 800 मीटर टी53/टी54 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने के बाद रमेश की आंखों में खुशी साफ झलक रही थी। अपनी जीत पर उत्साहित रमेश ने कहा, “जिस दिन एमएस धोनी संन्यास लेंगे, मैं क्रिकेट देखना बंद कर दूंगा।”
तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली जिले के मन्नथमपट्टी गांव से ताल्लुक रखने वाले रमेश वर्षों से धोनी को अपना प्रेरणास्रोत मानते आए हैं और इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) के आगामी सीजन का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
क्रिकेटर से पैरा एथलीट तक का सफर
रमेश ने साई मीडिया से बातचीत में बताया, “मैं पहले क्रिकेट खेलता था। तेज़ दौड़ता था और विकेटकीपर भी था। मैंने कई मैच स्टेडियम में देखे हैं, खासकर हमारे थाला एमएस धोनी के।”
30 वर्षीय इस पैरा एथलीट का मानना है कि धोनी से मिली सीख ने उन्हें व्हीलचेयर रेसिंग में सफलता की राह दिखाई। राष्ट्रीय स्तर पर 800 मीटर टी53/टी54 स्पर्धा के रिकॉर्ड धारक रमेश हाल ही में विश्व पैरा एथलेटिक्स ग्रैंड प्रिक्स में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीत चुके हैं। खेलो इंडिया पैरा गेम्स 2025 में भी उन्होंने 800 मीटर और 100 मीटर स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी उपलब्धियों की सूची में नया अध्याय जोड़ा।
संघर्षों से भरी जिंदगी, लेकिन हौसला बरकरार
एक किसान परिवार में जन्मे रमेश के लिए जीवन आसान नहीं रहा। मात्र आठ साल की उम्र में एक ट्रक दुर्घटना में उन्होंने अपने दोनों पैर खो दिए। सीमित संसाधनों वाले परिवार के लिए यह एक बड़ा झटका था, लेकिन सरकारी सहायता और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की।
उन्होंने कहा, “मेरे जीवन में कई कठिनाइयाँ आईं, लेकिन मुझे खुद को साबित करना है और अपना नाम बनाना है।”
रमेश ने त्रिची के एक कॉलेज से बायोकेमिस्ट्री में बी.एससी. करने के दौरान पैरा स्पोर्ट्स की ओर रुख किया। पहले वह पैरा बास्केटबॉल खिलाड़ी थे और भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए आठ अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेले। हालांकि, सीमित अवसरों के कारण दो साल पहले उन्होंने पैरा एथलेटिक्स को अपनाने का फैसला किया। बास्केटबॉल से मिली गति और ऊर्जा ने उन्हें व्हीलचेयर रेसिंग में तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद की।
परिवार और पत्नी का समर्थन बना ताकत
रमेश को अपने परिवार, खासकर अपनी पत्नी से जबरदस्त समर्थन मिला, जो एक निजी फर्म में काम करती हैं। उन्होंने कहा, “2023 में खेलो इंडिया पैरा गेम्स में मैंने कांस्य पदक जीता था, लेकिन इस बार मैंने दो स्वर्ण पदक अपने नाम किए। पहले मेरे परिवार में सब मेरे करियर को लेकर आश्वस्त नहीं थे, लेकिन मेरी पत्नी ने हर कदम पर मेरा साथ दिया। उनके समर्थन के बिना मैं यह मुकाम हासिल नहीं कर सकता था।”
अगला लक्ष्य – पैरालिंपिक में भारत का परचम लहराना
अब रमेश का अगला सपना पैरालिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना और स्वर्ण पदक जीतना है। उन्होंने कहा, “मेरे परिवार ने मुझे अपने सपने पूरे करने की अनुमति दी है। अब मेरा लक्ष्य भारत का नाम पैरालिंपिक में रोशन करना है।”
रमेश शानमुगम की यह प्रेरणादायक यात्रा उनके संकल्प, संघर्ष और अटूट जज़्बे की मिसाल है, जो हर युवा खिलाड़ी को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।