वाशिंगटन। मध्य पूर्व में तेजी से बिगड़ते हालात के बीच अमेरिका ने ईरान को दो हफ्ते की चेतावनी दी है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि इस अवधि में कूटनीतिक समाधान नहीं निकलता, तो अमेरिका ईरान के खिलाफ सख्त कदम उठाने को तैयार है।
गौरतलब है कि इजराइल के बीरशेबा स्थित एक बड़े अस्पताल और अन्य ठिकानों पर ईरान द्वारा किए गए मिसाइल हमलों के बाद तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। इस घटना के बाद ट्रंप ने कहा कि वह 14 दिनों में यह तय करेंगे कि अमेरिका को इजराइल के सैन्य अभियान में शामिल होना चाहिए या नहीं।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने कहा कि ट्रंप अब भी बातचीत के पक्ष में हैं, लेकिन किसी भी समझौते में ईरान के यूरेनियम संवर्धन और हथियार निर्माण पर सख्त प्रतिबंध जरूरी हैं। उन्होंने यह भी बताया कि ट्रंप के मध्य पूर्व दूत स्टीव विटकॉफ लगातार ईरानी अधिकारियों के संपर्क में हैं।
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन ने इन दो हफ्तों को कूटनीति का “अंतिम मौका” बताया है। उम्मीद की जा रही है कि इजराइली हमलों के दबाव में ईरान परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाने को तैयार हो सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम पर अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और मध्य पूर्व मामलों के दूत स्टीव विटकॉफ नजर बनाए हुए हैं। वहीं, जिनेवा में ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस के विदेश मंत्री ईरानी प्रतिनिधियों से मुलाकात कर विटकॉफ के प्रस्ताव पर चर्चा करने वाले हैं।
लेकिन ईरान का रुख अब भी आक्रामक बना हुआ है। तेहरान ने साफ कहा है कि जब तक इजराइल अपने हमले बंद नहीं करता, वह अमेरिका से कोई बातचीत नहीं करेगा।
लेविट ने दो टूक शब्दों में कहा, “अमेरिका की सेना दुनिया की सबसे शक्तिशाली सैन्य ताकत है। अगर जरूरत पड़ी, तो वह चुप नहीं बैठेगी।” व्हाइट हाउस में हुई हालिया बैठकों में ट्रंप ने ईरान की भूमिगत परमाणु सुविधा ‘फोर्डो’ पर बंकर-बस्टर बम से हमले के विकल्पों की समीक्षा की है।
उधर, इजराइल ने पहले ही “राइजिंग लायन” नामक सैन्य अभियान शुरू कर दिया है, जिसके तहत वह ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर रहा है। जवाब में ईरान ने मिसाइलों से हमला कर अपनी मंशा स्पष्ट कर दी है।
ब्रिटेन के विदेश सचिव डेविड लैमी ने भी माना है कि हालात बेहद संवेदनशील हैं, लेकिन कूटनीति के रास्ते अब भी खुले हैं। वहीं, इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि उनका देश अकेले ही अपने लक्ष्यों को हासिल करने में सक्षम है, लेकिन अमेरिकी मदद की भूमिका भी अहम है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का मानना है कि भले ही ईरान ने यूरेनियम का बड़ा भंडार जमा कर लिया हो, लेकिन उसने अभी तक परमाणु बम बनाने का अंतिम फैसला नहीं लिया है। हालांकि, अगर अमेरिका या इजराइल ने कोई बड़ा सैन्य कदम उठाया, तो ईरान का रुख तेजी से बदल सकता है।
अब सबकी नजर अगले 14 दिनों पर टिकी है – क्या बातचीत का दरवाजा खुलेगा या शुरू होगा नया युद्ध अध्याय?