भुवन ऋभु बने वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन से सम्मानित होने वाले पहले भारतीय अधिवक्ता

पटना। प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता भुवन ऋभु को वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन द्वारा प्रतिष्ठित ‘मेडल ऑफ ऑनर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें डोमिनिकन रिपब्लिक में आयोजित वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में प्रदान किया गया, जहां डोमिनिकन रिपब्लिक के श्रम मंत्री एडी ओलिवारेज ऑर्तेगा और वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष जेवियर क्रेमाडेस ने उन्हें सम्मानित किया। इस अवसर पर डोमिनिकन रिपब्लिक की महिला मंत्री मायरा जिमेनेज भी उपस्थित थीं। यह आयोजन 4 से 6 मई के बीच हुआ।

भुवन ऋभु पहले भारतीय अधिवक्ता हैं, जिन्हें यह अंतरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ है। वर्ल्ड लॉ कांग्रेस में 70 देशों के 1500 से अधिक विधिक क्षेत्र के दिग्गजों और 300 से अधिक वक्ताओं ने भाग लिया, जहां बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए भुवन ऋभु के द्वारा किए गए संघर्ष और उपलब्धियों को सराहा गया।

भुवन ऋभु ने पुरस्कार स्वीकार करते हुए कहा, “न्याय की इस लड़ाई में बच्चों को कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। कानून उनकी ढाल और न्याय उनका अधिकार होना चाहिए।” वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष, जेवियर क्रेमाडेस ने भुवन ऋभु के बारे में कहा, “भुवन ऋभु का दृढ़ विश्वास है कि न्याय लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ है, और उन्होंने अपना पूरा जीवन बच्चों और यौन हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए समर्पित किया है।”

वर्ल्ड ज्यूरिस्ट एसोसिएशन, जो 1963 में स्थापित हुई थी, दुनिया के विधिवेत्ताओं की सबसे पुरानी संस्था है, जिसने विंस्टन चर्चिल, नेल्सन मंडेला, रूथ बेडर गिन्सबर्ग, और अन्य ऐतिहासिक हस्तियों को सम्मानित किया है।

भुवन ऋभु, जो ‘जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन’ (JRC) के संस्थापक हैं, ने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में 60 से अधिक जनहित याचिकाएं दायर की हैं, जिनमें कई ऐतिहासिक फैसले आए हैं। इन फैसलों ने देश में बाल अधिकारों और बच्चों की सुरक्षा के परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। उनके संगठन JRC के 32 सहयोगी संस्थान बिहार के 38 जिलों में बाल अधिकारों की सुरक्षा में काम कर रहे हैं, और उनका उद्देश्य 2030 तक बाल विवाह की समाप्ति करना है।

भुवन ऋभु की किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू एंड चाइल्ड मैरेज’ में बाल विवाह के खात्मे के लिए एक समग्र योजना दी गई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2024 में जारी दिशानिर्देशों में मार्गदर्शिका के तौर पर मान्यता दी है।

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